मित्रों, हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा देवियो में पूजे जाने वाली माता दुर्गा ही है। देवी माँ को कई अलग अलग नामों से भी जाना जाता है। अरे इतना ही नहीं नवरात्रि के अवसर पर लगातार नौ दिनों तक माता के विभिन्न रूपों की पूजा अर्चना की जाती है। लेकिन मित्रों क्या आपने कभी ये सोचा है की आखिर महा दुर्गा प्रकट कैसे हुई और इस रूप में प्रकट होने के बाद उन्हें किस देवता से कौन कौन से अस्त्र शस्त्र मिले?
अगर नहीं तो आज के इस ए विडीओ को बिल्कुल भी इसके पर मत कीजियेगा तो नमस्कार और इस स्वागत है आपका ये डिवाइन टेल्स। पर एक बार फिर मित्रों बता दें कि देवी भगवती ने असुरों का वध करने के लिए कई अवतार लिए। दुर्गा सप्तशती में देवी के इन अवतारों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है, जिसके अनुसार एक बार जब महिषासुर नामक असुरों के राजा ने अपने बल और पराक्रम से सभी देवताओं से स्वर्ग छीन लिया था।
जब सारे देवता गण भोलेनाथ और श्रीहरि के पास सहायता के लिए पहुंचे थे। जब दोनों भगवान शिव और विष्णु जी ने पूरी बात जानी तो उन्हें ये जानकर क्रोध आया तब उनके और दूसरे देवताओं के मुख से एक तेज प्रकट हुआ जो नारी स्वरूप में परिवर्तित हो गया। भगवान शिव के तेज में इस देवी को मुख, यमराज के तेज में बाल, विष्णु के तेज में भुजाएं, चंद्रमा के तेज में वक्षस्थल, सूर्य के तेज में पैरों की अंगुलियां, कुबेर के तेज प्रजापति के तेज दांत अग्नि के तेज में तीनों नेत्र संध्या के तेज और वायु के तेज में एक कान दिए थे। इसके बाद देवी को शास्त्रों से सुशोभित किया गया। वहीं दुर्गा सप्तशती में आगे कहा गया है कि देवी दुर्गा को देवताओं ने अपने अस्त्र, शस्त्र व हथियार सौंपे थे ताकि असुरों के साथ होने वाले संग्राम में उन्हें जीत प्राप्त हो और धर्म स्थापित रहे, अधर्म का खात्मा हो और सतमार्ग की गति बनी रहे।
मित्रों आपको ये भी बता दे की माँ के सर्वाधिक अर्थार्थ 18 हाथ उनके महा लक्ष्मी स्वरूप में दिखाई देते हैं। इस स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा गया है, मैं कमल के आसन पर बैठी हुई प्रसन्न मुख वाली महिषासुरमर्दिनी भगवती महालक्ष्मी का नमन करता हूँ जो अपने हाथों में अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वजह, पद्मा, धनुष, कुंडिका, दंड, शक्ति, खड़क ढाल, शंख, घंटा, मधु, पात्रं, शूल, पाश और चक्र धारण करे हुए हैं। बता दें कि इनमें से कई प्रमुख कृति व्यस्त अलग अलग देवताओं द्वारा देवी को अर्पण किए गए माता के दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है, जिसके बारे में बताया गया है की ये त्रिशूल है स्वयं भोलेनाथ में अपने शूल में से निकाल कर उन्हें सौंपा था। वहीं शक्ति दी व्यस्त उन्हें अग्निदेव ने भेंट किया था। जब महिषासुर के साथ देवी माँ का युद्ध हुआ जब महिषासुर ने अपने साथ कई देते रहते हाथी घोड़ों की सेना के साथ चतुरंगिणी सेना भी लेकर आया था तब देवी माँ ने अपनी इसी शक्ति से इन्हें सेनाओं को खदेड़ा था और इनका वध किया था। बता दें कि रक्तबीज व दूसरे को मारने के लिए माने चक्र का प्रयोग किया। अपने भक्तों की रक्षा के लिए माँ को यह चक्र लक्ष्मीपति श्रीहरि ने अपने चक्र से ही उत्पन्न करके दिया था। इतना ही नहीं धरती, आकाश व बादल तीनों लोगों को अपनी ध्वनि से कम्पायमान कर देने वाला शंख जब ऊंचे स्वर में युद्धभूमि में गूंजता था, तब देते असुर और राक्षसों की सेना रन भूमि छोड़कर भाग खड़ी होती थी, वो डर से कांपने लगते थे। और मित्रों आपको बता दूँ की ये चमत्कारी शंख माता को वरुण देव ने भेंट किया था। मित्रों, तीनों लोगों के शोभा ग्रस्त हो जाने पर जब राक्षस गान देवी दुर्गा की तरफ और हथियार लेकर दौड़ें तब देवी ने मनुष्य बहनों के प्रहार से पूरी सेना का सर्वनाश कर दिया था। बता दें की माता को धनुष व बाणों से भरे हुए दो तरकश खुद पवन देव ने प्रदान किए थे। और तो और अनेक असुरों व दैत्यों को घंटे की नाद से मूर्छित करके उनका विनाश करने वाली माँ को एरावत हाथी के गले से उतार कर एक घंटा देवराज इंद्र ने दिया। साथ ही अपने वजह से एक और वजह उत्पन्न किया और वो वजह भी इंद्र देवता नहीं माँ को दिया था।
इसके अलावा मुंड का नाश करने के लिए माने महाकालीका विकराल रूप धारण किया था जिसमें वो नर मुंडों की माला पहने हुए क्रोध से उनके चेहरे का रंग काला और जीभ बाहर की और ये लटकाई थी। इस विचित्र स्वरूप में माँ ने एक फरसा धारण किया था, जिसे उन्होंने बेटियों का किया और मित्रों ये बलशाली फरसा उन्हें विश्व कर्मा में भेदक किया था। इसके साथ ही आपको बता दें कि तलवारें ढाल माता को कालदेव ने प्रदान की थी।
माँ अपनी इसे चमकदार तलवार से कई असुरों की गर्दन काट देती थी और अपनी रक्षा के लिए इसे ढाल का इस्तेमाल करती। वहीं यमराज ने अपने काल डंडे से माता को दंड भेंट किया था, जिससे युद्ध भूमि में माँ ने असंख्य असुरों का नाश किया। इतना ही नहीं दुर्गा माता को प्रजापति दक्ष ने स्फटिक माला, ब्रह्मा जी ने कमंडल, सूर्यदेव ने अपना तेज समुद्र, देव ने वस्त्र और आभूषण सरोवर में कभी न मुरझाने वाली कमल की माला अरे पर्वतराज हिमालय ने सवारी के लिए उन्हें एक शक्तिशाली शेर दिया था। वहीं कुबेर देव ने उन्हें एक शहर से भरा हुआ पात्र भेंट किया था। अब ये सभी देवताओं से शक्तियां प्राप्त करने के बाद ही महादुर्गा ने युद्ध में महिषासुर का वध किया। अरे, पुणे धर्म की स्थापना की और मित्रों महिषासुर का वध करने के कारण ही उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है। तुम मित्रों, आज हमने जाना कि महादुर्गा कैसे प्रकट हुईं थीं और इस रूप में प्रकट होने के बाद किस देवता ने उन्हें कौन कौन से अस्त्र शस्त्र दिए। अगर आपको दी गई जानकारी अच्छी लगी हो तो इस Post को अपने मित्रों, रिश्तेदारों के साथ ही साझा जरूर करें और ऐसी सभी धार्मिक और आध्यात्मिक जानकारीयों के लिए जुड़े रहें hindi.uttarpurbanchal.com.
तो मित्रों फिलहाल आज के लिए बस इतना ही अब इजाजत दे आपका बहुत बहुत शुक्रिया।